Topic: तर्क वेदी (Tark Vedi)
Subject: कथा - अजमेल, सदना कसाई, धन्ना भगत, दत्तात्रेय, पीपा राजा (Ajamail, Sadhna Kasai, Dhanna Bhagat, Dattatreya, King Pippa)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 511
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
पांडे बेद पढैं क्या होई, घट अंदर की खबर न जानैं दौरा लूटैं तोही।।1।। एकै गुदरी एकै धागा, पांच तत्त रंग भीना बागा। हाड चाम का सकल पसारा, सब घट एकै बोलन हारा।।2।। भर्म भेद भूलो मति कोऊ, सब घट एकै गूदा लोहू। भग द्वारै सब आवैं जांही, ऊंच नीच कहां भिन्न बतांही।।3।। उदर बीच कहां पोथी पाना, शालिग शिला नहीं अस्थाना। नांथा पांडे कंध जनेऊ, बहु बिधि भूले बाट बटेऊ।।4।। दर्पण धोती तिलक न होता, ऊध्र्व मुखी भवजल में गोता। तहां नेम आचार नहीं था भाई, तातैं समझि शब्द ल्यौ लाई।।5।। गीता गायत्री नहीं होती, कागज कलम न पत्रा पोथी। निःसंदेह देव नहीं दूजा, ना जहां पत्थर पानी पूजा।।6।। कण्ठी माला न मृग छाला। ना चंदन के छापे। पत्थर पूजैं पद नहीं बूझैं, पूरण ब्रह्म न लापे।।7।। शुद्र ब्रह्मनी जाया भाई, तुम्हरा शुद्र शरीरं, बाहर आंनि भये ब्रह्मचारी, न्हाते बहु जल नीरं।।8।। बहु जल नीरं गहर गंभीरं, सूतक पातक जीमें। भवजल आनि परे हैं भाई, घोर कुण्ड फिर नीमें।।9।। क्रियासैं कारज नहीं सरता, भक्ति भाव सें दुःखे। घीव बसंदर देदे पांडे, होम बहुत से फूके।।10।। होम हनोज किये निशिबासर, जीव हिते बहु दगदे। ऊत भूत की पूजा र्खाइ , भोजन बहु बिधि बगदे।।11।। देबी के तुम दास कहावो, मशानी मन माला। चण्डी का तुम चाव रखत हो, इत होसी मूंह काला।।12।। दुर्गा कै ले मुरगा दौरैं, चण्डी कै ले बकरा। बहुत कफीक शरै में होंगे, छाती दीजै लकरा।।13।। सेढ शीतला गदहा मांगै, याह कौन अविद्या पांडे। आगे की तो आगै होती, इत ही जमकूं डांडे।।14।। भैरव आगै भोषा बैठ्या, क्षेत्र पाल करूरी। कुल का पुरोहित पोथी बांचै, कीजै बेग कंदूरी ।।15।। करौ कंदूरी भोजन पूरी, खीर खाण्ड षट् मासा। घरमें शोर चोर जम लूटै, यौह जग अजब तमाशा।।16।। अजब तमाशा संतौं दीठा, तगुरु दृष्टि उघारी। क्षेत्रपाल काल होय लाग्या, भूत भये ब्रह्मचारी।।17।। ये ब्रह्मचारी करैं अग्यारी, मुरदे ऊपर खांही। तेंरामी का तार न काढ्या, कारज जीमन तांही।।18।। जा दिन हंसा करै पियाना, कौंन धाम कूं जाई। जिस काया में रहता हंसा, सो तो ठोक जराई।।19।। ठोक जराई छार उड़ाई, किस की मुक्ति करोगे। कौंन भर्मणा भूले पाण्डे, काके पिण्ड भरोगे।।20।। पांच तत्त की गुदरी फूकी, डीक जली सब दीठी। अंध घोर में भूले र्भाइ । झूठी मुक्ति बसीठी।।21।। आवत जाता नजर न आया, गैबी खेल खिलारी, बाजीगर के जंत्र मांहीं भूलि रहे ब्रह्मचारी।।22।। बहु बिधि भूले अर्थ न खूल्हे, अनर्थ सेती राते। परम धाम की बाट न पाई, ऐसैं भवजल जाते।।23।। भवजल जाते दोजिख राते, फिरि फिरि आवैं जूनी। काया माया थिर नहीं भाई, पांच तत्त की पूंनी।।24।। पूंनी बिनशै धागा निकसै, सो धागा कहां समाना। उस गैबी का मारग चीन्हौं, त्यागो बेद पुराना।।25।। बेद पुराना जगत बंधाना, जमपुर गोते खाई। झूठा ज्ञान ध्यान कहां लागै, बाद विद्या चतुराई।।26।। निःसंदेह देह कूं खोजो, सोहं सन्धि मिलाई। मानसरोवर हंसा राते, मोती चुनि चुनि खाई।।27।। काल कल्पना दूर निवारो, आवा गमन न होई। राम रसायन सें दिल भाग्या, यौह जग पीवै छोई।।28।। पत्थर पानी भर्म कहानी, पूजि मुई सब बाजी। बेद कुराना बंदत खाना, मरगे पंडित काजी।।29।। पंडित काजी डोबी बाजी, दोनूं दीन अनाथा। बहिश्त बैकुण्ठ राह नहीं पाया, देख्या दोजिख जाता।।30।। जाकूं बहिश्त बैकुण्ठ कहत हो, सो स्वप्ने की झांही। असंख्य जीव बैकुण्ठां राते, पर जूनी छूटै नांही।।31।। बहिश्त बैकुण्ठ हमौं भी देख्या, हमरा दिल नहीं लाग्या। शुन्य मंडल कूं किया पयाना, काल कर्म सब भाग्या ।।32।। बहिश्त बीच है बड़ा भराहर, जम के हाथौं फांसी। जौंरा काल ख्याल तहां गावै, देखी गुरजि तिरासी ।।33।। गुरजि तिरासी बहुत उदासी, संतौं न स्वर्ग भावै। उत्पत्ति प्रलय फरदी मेटौं, बहुरि नहीं डहकांवैं।।34।। जो पांडे बहु पाठ पढंते, देखे जम की जाली। भैरव कूं रक्षा नहीं कीन्ही, क्षेत्रपाल रखवाली।।35।। ऊत भूत की पूजा खाई, करुवा चैथ कहानी। देबी तुम्हरी छोटी पुत्री, जेठी धीव मशांनी।।36।। सेढ शीतला शाख रखत हो, चण्डी तुम्हरी माई। क्षेत्रपाल है पिता तुम्हारा। भैरव भूता माई।।37।। राहु केतु सैं बहु बिधि राते, नौ ग्रह सेती नेहा। फोकट ख्याल माल बहु लूटे, अंत पड़ी मूँ खेहा।।38।। धरि शिब लिंगा बहु बिधि रंगा, गाल बजावैं गहले। लिंग पूजि शिब साहिब मिलि हैं, तो पूजो क्यूं नहीं खैले।।39।। कदि शंकर कूं सेवा मांडी, मुंडित भये आचारी। लाय अंगीठ काष्ट कदि फूके, घीव बसंदर जारी।।40।। कदि सनकादिक पत्थर पूजे, अठसठ तीरथ न्हाये। चंदन काठ घसी कदि पत्थरी। कदि द्वादश तिलक बनाये।।41।। कदि ब्रह्मा कूं छापे लीन्हें। द्वारामती नरेशा। कदि पत्थर कूं पान खुवाये, जटा बधाये केशा।।42।। शेष गणेश गंग कदि न्हाये, कदि गायत्री लापी। धूंमी घलि दिये कदि धामे, पीठ कौन दिन तापी।।43।। कदि नारद मुनि नाद बजाया, शंखा झालरि पीटी। होम आचार कौंन दिन कीन्हें, चंदन चरच्या घींटी।।44।। कदि ध्रुव प्रहलाद द्वारिका न्हाये, कदि बृंदाबन फेरी। इन्द्र दौंन किये अस्नाना, गंगा सागर बेरी।।45।। कदि गोरख ने गुरजि चर्लाइ , तेग चक्र कदि बांधे। दत्तात्रेय तीर कदि घाले, बान कौन दिन सांधे।।46।। बालमीक कदि ग्यारस राखी, शालिग पत्थर धोके। देवल धाम हदीरे पूजे, भाठे किस दिन पोषे।।47।। जनक जती कहौ किस दिन रहिया, शुकदेव कदि स्वर शोधे। सैंना सिंधु कौन दिन न्हाये, नामा पुस्तक रोधे।।48।। अजामेल कदि आरती कीन्ही, पीपा पतरे बांचे। सदना गलि कदि रहे जनेऊ, झांझ पीटि कदि नांचे।।49।। रैदास आकाशि रहे कदि मौंनी, धना धूप कदि बैठे। नीर कबीर रहे कदि झरण ै ं, जला बिंबमें पैठे।।50।। मुहम्मद नें कदि महजदि पूजी, बाजीद ईद कदि खाधी। सुलतानी कदि पांनी पूजे, छाड़ि तख्त गये गादी।।51।। मछंदर माह कौंन दिन न्हाये, जलंधर कर कदि सूके। गोपीचंद भरथरी होते, चूल्हे किसदिन फूके।।52।। नानकनें कदि नास लई है, ककड़ पोसत घोटे। सूजा पींघ घालि कदि झूले, लीन्हें धूंमरि झोटे।।53।। सम्मन नैं कदि ब्राह्मण पूजे, कदि सेऊ लाई सेवा। रंका बंका कदि रण मंडे, चीन्हें पूर्ण देवा।।54।।