Rag Paraj | राग परज


राग परज | Rag Paraj

Topic: राग परज (Rag Paraj)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 755
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram

राग परज | Rag Paraj | Audio mp3

राम न जांन्या रे मूढ नर, राम न जांन्या रे।।टेक।। जल की बूंद महल रच्या, यौह सकल जिहांना रे। जठर अग्नि सें राखिया, तेरा पिण्ड रु प्राण रे।।1।। जहां तोकूं भोजन दिया, अमृत रस खांना रे। गर्भ बास सें काढि करि, नर बाहिर आंन्या रे।।2।। लीला अगम अगाध है, सूरति बिधि नांना रे। मात पिता सुतबंधवा, क्या देखि भुलांना रे।।3।। इन में तेरा को नहीं, क्यौं भया दिवांना रे। जो तन चंदन लेपते, ले धरे मशांना रे।।4।। सूवै सिंभल सेईया, तरु देख लुभाना रे। चोंच मारि व्याकुल भया, बौहते पछितांनां रे।।5।। मानसरोवर कमल दल, घर दूरि पयांना रे। गये रसातल राह कूं, पढि पोथी पांना रे।।6।। सतगुरु संत सेये नहीं,पूजैं पाखांनां रे। मरकब भये कुम्हार के, फिरि शूकर श्वाना रे।।7।। पंथ पुरातम बूझि हैं, कोई संत सुजाना रे। श्वासा पारस नाम है, नाभी असथांना रे।।8।। हिरदै में हरि पाईये, त्रिकुटी प्रवांना रे। गगन मंडल में गुमट है, जहां धजा निशाना रे।।9।। हाजरि नाजरि है धनी, साहिब दिल बियांना रे। पलकौं चैंरा कीजिये, तापरि कुरबांना रे।।10।। मन पवन सुरति सें अगम है, कहै निरति बियांना रे। जैसैं अलल अकाश कों, धरि है धुंनि ध्याना रे।।11।। आसन बंध अडोल मन, जो पदहि समांना रे। गरीबदास यौ पाईये, पीव पुरुष पुरांना रे।।12।।1।।

लेखा लीजै रे धनी कै, लेखा लीजै रे।।टेक।। हाटि पटन सब लूटिगये, कहो अब क्या कीजै रे। पूंजी मूल गंवाईया, फिर कौंन पतीजै रे।।1।। मैं गाफिल भूल्या फिरौं, गढ हंस चढीजै रे। चाकर चोर अनादि का, शिर बोझा दीजै रे।।2।। शीश काटि हाजरि करै, जब सतगुरु रीझे रे। अमी महारस सार नाम है, अमृत पेय पीजै रे।।3।। गगन मंडल भाठी झरै, कमलादल भीजै रे। शब्द अनाहद घोर है, चलि हंस सुनीजै रे।।4।। पूंजी शाहूकार की, याह हरदम छीजै रे। गरीबदास दूनैं करै, सो शाह कहीजै रे।।5।।2।।

लेखा देनां रे धनी कै, लेखा देनां रे।।टेक।। रागी राग उचारते, गावत मुख बैंनां रे। हस्ती घोड़े पालकी, छाड़ी सब सैना रे।।1।। रोकड़ि धरी ढकी रही, सब जेवर गहनां रे। फूकि दिया मेंदान में, कछू लैंन न दैंना रे।।2।। मुगदर मारैं शीश में, जम किंकर दहनां रे। उतरि चल्या तागीर होय, ज्यौं मरदक सहनां रे।।3।। फूल्या सो कुमलात है, जो चिन्यां सो ढहनां रे। चित्रागुप्त लेखा लीया, जहां कागज फहना रे।।4।। चलिये आंब दिवान में, सतगुरु सें कहनां रे। मुसकलि सें आसांन होय, ज्यौं बहुरि न मरनां रे।।5।। बोया आपनां सब लुणैं, पकरौं मन अहनां रे। चरण कमल के ध्यान सैं, छूटैं सब फैंना रे।।6।। परानंदनी संग है, जाकै कामधैंनां रे। गरीबदास फिरि आव हीं, जो अजर जरैंना रे।।7।।3।।

भजन करि राम दुर्हाइ  रे, भजन करि राम दुर्हाइ  रे।।टेक।। जनम अमोली तुझि दीया, नरदेही पाई रे। देही देवा लोचहीं, सुरनर मुनि भाई रे।।2।। सनकादिक नारद रटैं, चहूं बेदां गाई रे। भक्ति करैं भौजल तिरैं, सतगुरु शरनाई रे।।2।। मिरगा कठिन कठोर हैं, कहु कहां डहकाई रे। कसतूरी है नाभ में, बाहरि भरमाई रे।।3।। राजा बूड़े मान में, पंडित चितराई रे, ज्ञान गली में बंक है, तन धूलि मिलाई रे।।4।। उस साहि कूं यादि करि, जिनि सौंज बनाई रे। देखत ही होय जात है, परबत सें राई रे।।5।। कंचन काया नास होय, तन ठोकि जराई रे, मूरख भौंदू बावरे, क्या मुक्ति कराई रे।।6।। चमरा बालमीक तर गये, और छीपा नाई रे। गनिका चढी बिमान में, सुरगापुर जाई रे।।7।। अजामेल गणिका तिरे और सदन कसाई रे। नीच तरैं तौ सें कहूं, नर मूढ अन्याई रे।।8।। शब्द हमारा साच है, और ऊंट की र्बाइ  रे। धूंसे कैसा धौलहर, तिहूं लोक चर्लाइ  रे।।9।।कलविष कुसमल सब कटैं, तन कंचन काई रे। गरीबदास निज नाम है, नित परबी न्हाई रे।।10।।4।।