Topic: सुकर्मी पतिव्रता का अंग (Sukarmi Pativrata ka Ang)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 60
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
गरीब, हरिचन्द हरिहेतं, अयोध्या नगरी रहते। सत जुग सिंध समाधि, बचन सब सत ही कहते।।293।।
गरीब, सुर नर मुनिजन देव, सकल मन नांही भाया। सब मुनि करी फिलादि, सुनो तुम त्रिभुवनराया।।294।।...
गरीब, अंबरीस पतिवरत, एकादस ज्ञान बिचारा। जहां दुर्बासा जाइ, किया है मल्ल अखारा।।80।।
गरीब, अंबरीस अधिकार, मिले दुर्बासा र्जाइ । कीना आदर भाव, सीस चरणों धरि र्भाइ ।।81।।...