Topic: शब्द (Shabad)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 995
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
मोकूं कहां ढूंरे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।।टेक।।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निबास में। ना मन्दिर में, ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।।1।।
ना मैं जप में ना मैं तप में, ना व्रत उपवास में। ना मैं क्रिया करम में रहता, ना मैं योग सन्यास में।।2।।
नहीं प्राण में नहीं पिण्ड में, ना ब्रह्मण्ड आकाश में। ना मैं त्रिकुटि भंवर गुफा में, सब श्वासन के श्वास में।।3।।
खोजी होय तुरंत मिल जाउं, एक पल ही की तलाश में। कहै कबीर सुनो भई साधो, मैं तो हूं बिश्बास में।।4।।
मस्तक लाग रही म्हारे, गुरु चरणन की धूर।।टेक।।
जब यह धूल चढी मस्तक पै, दुविधा होगई दूर। इड़ा पिंगला ध्यान धरत हैं, सुरती पहुंची दूर।।1।।
यह संसार विघन की घाटी, निकसत बिरला शूर। प्रेम भक्ति गुरु रामानन्द लाये, करी कबीरा भरपूर।।2।।