Topic: Sarv Lakshan Granth | सर्व लक्षणा ग्रन्थ
Book / Scripture: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 548
उत्तम कुल कर्तार दे, द्वादश भूषण संग। रूप द्रव्य दे दया करि, ज्ञान भजन सत्संग।।1।। शील संतोष बिबेक दे, क्षमा दया इक तार। भाव भक्ति वैराग दे, नाम निरालम्ब सार।।2।। योग युक्ति स्वासथय जगदीश दे, सुक्ष्म ध्यान दयाल। अकलि अकीन अजन्म जति, अष्ट सिद्धि नौ निधि ख्याल।।3।। स्वर्ग नरक बांचैं नहीं, मोक्ष बंधन सें दूर। बड़ी गरीबी जगत में, संत चरण रज धूर।।5।। जीवन मुक्ता सो कहौ, आशा तृृष्णा खण्ड। मन के जीते जीत हैं, क्यौं भ्रमैं ब्रह्मण्ड।।5।। शाला कर्म शरीर में, सतगुरु दिये लखाय। गरीबदास गलतान पद, नहीं आवै नहीं जाय।।6।। चैरासी की चाल क्या, मो सेती सुनि लेह। चोरी जारी करत हैं, जाकै मौंहडै खेह।।7।। काम क्रोध मद लोभ लट, छुटी रहै विकराल। क्रोध कसाई उर बसै, कुशब्द छुरा घर घाल।।8।। हर्ष शोक हैं श्वान गति, संसा सर्प शरीर। राग द्वेष बड़े रोग हैं यम के परे जंजीर।।9।। आशा तृष्णा नदी में, डूबे तीनों लोक। मनसा माया बिस्तरी, आत्म आत्म दोष।।10।। एक शत्रु एक मित्र है, भूल पड़ी रे प्राण। जम की नगरी जाहिगा, शब्द हमारा मान।।11।। निंदा बिंदा छाड़ि दे, संतौं सूं कर प्रीत। भवसागर तिर जात है, जीवत मुक्ति अतीत।।12।। जै तेरे उपजे नहीं, तो शब्द साखि सुनि लेह। साक्षीभूत संगीत है, जासैं लाओ नेह।।13।। स्वर्ग सात असमान पर, भटकत है मन मूढ। खालिक तो खोया नहीं, इसी महल में ढूंढ।।14।। कर्म भर्म भारी लगे, शंशा सूल बबूल। डाली पांनौं डोलते, परसत नांहीं मूल।।15।। श्वासा ही में सार पद, पद में श्वासा सार। दम देहि का खोज करि, आवागवन निवार।।16।। बिन सतगुरु पावे नहीं, खालिक खोज बिचार। चौरासी जग जात है, चीन्हत नाहीं सार ।।17।। मरद गर्द में मिलि गये, रावण से रणधीर। कंस केश चाणूर से, हिरणाकुश बलबीर।।18।। तेरी क्या बुनियाद है, जीव जन्म धरि लेत। गरीबदास हरिनाम बिन, खाली परसी खेत।।19।।