Rarankar Ramta Rahe Man Baura Re | ररंकार रसता रहे मन बौरा रे
Topic: Rag Sarbang | राग सरबंग
Book: Sat Granth Sahib of Sant Garib Das Ji
Page: 818
Explanation by Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
ररंकार रमता रहे मन बौरा रे।
तुंही तुंही फुनिलार समझि मन बौरा रे।। टेक।।
सोहं षब्द सही मिलै मन बौरा रे।
आगै भेद अपार समझि मन बौरा रे।। 1।।
जहां ज्ञान ध्यान की गमि नहीं मन बौरा रे।
सुरति निरति नहीं जाय समझि मन बौरा रे।। 2।।
कोटिक प्रानी ध्यान धरि मन बौरा रे।
उलटि परे भौ आय समझि मन बौरा रे।। 3।।
सिर साटे का खेल है मन बौरा रे।
सूली ऊपरि सेज समझि मन बौरा रे।। 4।।
जहां संख कोटि रवि झिलमिलैं मन बौरा रे।
नूर जहूरं तेज समझि मन बौरा रे।। 5।।
कायर भागे देखते मन बौरा रे।
सुनि अनहद घनघोर समझि मन बौरा रे।। 6।।
घाव नहीं मैं घावले मन बौरा रे।
कोई सूरा रहसी ठौर समझि मन बौरा रे।। 7।।
लोझा पीठि न फेर हीं मन बौरा रे।
सन्मुख अरपैं षीष समझि मन बौरा रे।। 8।।
तन मन मिरतग हो रहै मन बौरा रे।
तिस भेटे जगदीष समझि मन बौरा रे।। 9।।
सतलोक कूँ चालिये मन बौरा रे।
संत समागम हेत समझि मन बौरा रे।। 10।।
तहां एक गुमट अनूप है मन बौरा रे।
जहां छत्र सिंघासन सेत समझि मन बौरा रे।। 11।।
षब्द महल गुलजार है मन बौरा रे।
जहां ढुरैं सुहंगम चौंर समझि मन बौरा रे।। 12।।
दास गरीब जहां रते मन बौरा रे।
जहां गूजैं उजल भौंर समझि मन बौरा रे।। 13।। 1।।
याह काया छिन भंग है मन बौरा रे।
सुमरो सिरजनहार समझि मन बौरा रे।। टेक।।
रूंम रूंम धूनि ध्यान धरि मन बौरा रे।
आठौं कँवल उच्चार समझि मन बौरा रे।। 1।।
यौह लाहा क्यों न लीजिये मन बौरा रे।
सुरति निरति कर लीन समझि मन बौरा रे।। 2।।
पंछी खोज न पाईये मन बौरा रे।
ज्यौं दरिया मध्य मीन समझि मन बोरा।। 3।।
पांच तत्व के मध्य है मन बौरा रे।
नौ तत्व लिंग षरीर समझि मन बौरा रे।। 4।।
नौ तत्व के से आगहीं मन बौरा रे।
अजर अमर गुरु पीर समझि मन बौरा रे।। 5।।
सूक्ष्म रूप है तास का मन बौरा रे।
चतुर्भुजी चितरंग समझि मन बौरा रे।। 6।।
अष्ट भुजा है तास मध्य मन बौरा रे।
मूरति अचल अभंग समझि मन बौरा रे।। 7।।
सहंस भुजा संगीत है मन बौरा रे।
षिखरि सरू बैराठ समझि मन बौरा रे।। 8।।
विष्व रूप है तास मध्य मन बौरा रे।
गुरु लखाई बाट समझि मन बौरा रे।। 9।।
षंख चक्र गदा पदम है मन बौरा रे।
कौसति मणि झलकंत समझि मन बौरा रे।। 10।।
धनुष बान मूसल धजा मन बौरा रे।
अजब नवेला कंत समझि मन बौरा रे।। 11।।
खड़ग धार भुज डंड है मन बौरा रे।
फरकैं धजा निषान समझि मन बौरा रे।। 12।।
निरख परखि करि देख ले मन बौरा रे।
साचे सतगुरु के प्रवानि समझि मन बौरा रे।। 13।।
ता आगे सत पुरुष है मन बौरा रे।
जाकै भुजा असंख समझि मन बौरा रे।। 14।।
अनंत कोटि रवि झिलमिलैं मन बौरा रे।
हंस उडैं बिन पंख समझि मन बौरा रे।। 15।।
सेत छत्र चौंरा ढुरैं मन बौरा रे।
दामनि दमक दयाल समझि मन बौरा रे।। 16।।
अमर कछ अनहद पुरी मन बौरा रे।
सतगुरु नजरि निहाल समझि मन बौरा रे।। 17।।
अनंत जुगन की बाट थी मन बौरा रे।
पल अंदरि प्रवानि समझि मन बौरा रे।। 18।।
मिहर दया से पाईये मन बौरा रे।
औह दरगह दिवान समझि मन बौरा रे।। 19।।
संख योजन परि लाल है मन बौरा रे।
दमक्या चिसम्यौं तीर समझि मन बौरा रे।। 20।।
दास गरीब लखाईया मन बौरा रे।
मुरषद मिले कबीर समझि मन बौरा रे।। 21।। 2।।