Topic: राग सारंग (Rag Saarang)
Subject: मन मानसरोवर न्हान रे (Mann mansarovar nahan re), मन मानसरोवर गंग रे (Mann mansarovar gang re), मन मानसरोवर मेल रे (Mann mansarovar mail re), मन मांनिक लहरि समंदरे (Mann manik lehar samand re)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 907
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
मन मानसरोवर न्हान रे,जल के जंत रहै जल मांही। आठौं बखत बिहान रे।।टेक।। लख चैरासी जल के बासी,भरमें चार्यौं खानि रे। चेतन होय करि जड़ कूं पूजैं, गांठी बांधि पषांन रे।।1।। मरकब कहा चंदन कै लेपैं, क्या गंग न्हावावे श्वान रे। सूधी होय न पूंछ जास की, छाड़त नाहीं बानि रे।।2।। द्वादश कोटि जहां जम किंकर, बड़े बड़े दैंत हिवान रे। धर्मराय की दरगह मांही, हो रही खैंचा तान रे।।3।। लख चैरासी कठन तिरासी, बचन हमारा मानि रे। जैसैं लोह तार जंती में, ऐसैं खैंचैं प्रान रे।।4।। जूंनी संकट मेट देत हैं, शब्द हमारा मानि रे। हरदम जाप जपौ हरि हीरा, चलना आंब दिवान रे।।5।। सुरग रसातल लोक कुसातल, रचे जिमी असमान रे। चैदह तबक किये छिन मांही, सिरजे शशि अरु भान रे।।6।। निरगुन नूर जहूर जुहारौ, निरखि परिख प्रवानि रे। गरीबदास निजनाम निरंतर, सतगुरु दीन्हा दानि रे।।7।।1।।
मन मानसरोवर गंग रे, जहां का बिछर्या तहां मिलाऊं। सुनौं शब्द प्रसंग रे।।टेक।। दहनैं गंगा बामें जमना, मधि सुरसती रंग रे। कलविष कुसमल मोचि होत हैं, पलपल परबी अंग रे।।1।। काशी करवत काहे लेही, बिना भजन नहीं ढंगरे। कोटि ग्रन्थ का यौही अरथि है, करौ साथ सतसंग रं।।2।। छूछिम रूप सरूप सुभानं, निहचल अचल अभंग रे। आसन असतल नहीं तास कै, बाना बिरद बिनंग रे।।3।। बिनहीं पंखौं उड़ै गगनि कूं, चालै चाल बिहंग रे। दिब दृष्टि तौ दरश करत हैं, हरदम कला उमंग रे।।4।। परानन्दनी पारिख लीजैं, मूल मंत्रा ॐ अंग रे। गायत्री गलतान ध्यान हैं, सोहं सुरति सुहंग रे।।5।। अजपा जपौ निश बासर, जीति चलो जम जंग रे। गरीबदास दर्शन देवा का, देखि भया मन दंग रे।।6।।2।।
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मन मानसरोवर मेल रे, भौसागर सें पारि उतारैं। अगम अगोचर खेल रे।।टेक।। सरवन बिना शब्द एक सुनिये, परखौ ताहि बलेल रे। गगन मंडल में ध्यान धरौ रे, दीपक है बिन तेल रे।।1।। च्यार्यौं जुग में संत पुकारें, कूकि कह्या हम हेल रे। हीरे मोती मांनिक बरषैं, यौह जग चुगता डेल रे।।2।। पांच पच्चीस तीन पर तकिया, यौह मन सुनि सकेल रे। बरदवांन ले बुधि का बांधौ, भौजन नौका पेल रे।।3।। बारु केसी गांठि बंधि है, नर समझौं मूढ बलेल रे। लखी करोड़ी भये जगत में, संगि न चलिया धेल रे।।4।। हसती घोड़े अरथ पालकी, ताजी घालि हमेल रे। सूरे हो करि शीश कटावैं, लावत है तन सैल रे।।5।।एकपापी एकपुनी आये,एक है सूंम दलेल रे।गरीबदास एक सत्यनाम भजन बिन,सब ही जम की जेल रे।।6।।4।।
मन मांनिक लहरि समंदरे, मुरजीवा नघ सीप न सायर। निरमल आनंद कंद रे।।टेक।। मोती मुक्ता दरशत नांही, यौह जग है सब अंध रे। दीखत कै तौ नैंन चिसम हैं, फिर्या मोतिया बिंद रे।।1।। नर नारायण देह पाय करि, कट्या जम का फंध रे। रतन अमोली दरशत नांही, ध्रिग है बाकी जिंद रे।।2।। पूरन ब्रह्म रते अबिनाशी, जो भजन करैं गोविंद रे। भाव भक्ति जा हिरदै होई, फिरि क्या करि है सुरपति इंद रे।।3।। लख चैरासी बहे जात थे, सूवटा गंदा अंड रे। तत नाम सतगुरु कूं दीन्हां, जाय मिले सुख सिंध रे।।4।। इंद्री कर्म न लगे लगारं, जो भजन करै निरदुंद रे। गरीबदास जग कीरति होयगी जिब लग सूरजि चंद रे।।5।।5।।