Topic: राग काफी (Rag Qafi)
Subject: नहीं है दारमदारा उहाँ तो, नहीं है दारमदारा (Nahin hai daaramdaara), क्या गावै घर दूरि दिवांनें क्या गावै घर दूरि (kya gaave ghar door)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 939
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
नहीं है दारमदारा उहाँ तो, नहीं है दारमदारा ॥टेक॥
उस दरगह में धर्मराय है, लेखा लेगा सारा ॥1॥
मुल्ला कूके बंग सुनावे, ना बहरा करतारा ॥2॥
तीसों रोजे खून करत हो, क्यों कर होय दीदारा॥3॥
मूल गंवाय चले हो काजी, भरिया घोर अंगारा ॥4॥
भोजल बूड़ि गये हो भाई, कीजेगा मुँह कारा ॥5॥
वेद पढ़े पर भेद न जाने, बाँचें पुराण अठारा ॥6॥
जड़ कूँ अंधरा पान खवावे, बिसरे सिरजनहारा ॥7॥
उजड़ खेड़े बहुत बसाये, बकरा झोटा मारा ॥8॥
जा कूँ तो तुम मुक्ति कहत हो, सो हैं कच्चे बारा ॥9॥
मांस मछरिया खाते पांडे, किस विध रहे उचारा ॥10॥
स्यों जजमान नरक कु चाले, बूड़े स्यूं परिवारा ॥11॥
छाती तोरि हनें जम किंकर, लाग्या जम का लारा ॥12॥
दास गरीब कहे बे काजी, ना कहीं वार न पारा ॥13॥1॥
क्या गावै घर दूरि दिवांनें क्या गावै घर दूरि।।टेक।।
अनलहक्क सरे कूं पौंहचीं, सूली चढे मनसूर।।1।।
शेख फरीद कूयें में लटके हो गये चूरम चूर।।2।।
सुलतानी तजि गये बलख कूं, छाड़ी सोलह सहंसर हूर।।3।।
गोपीचंद भरथरी जोगी, सिर में डारी धूर।।4।।
दादूदास सदा मतवारे, झिलिमिलि झिलिमिलि नूर।।5।।
जन रैदास कबीर कमाला, सनमुख मिले हजूर।।6।।
दोन्यौं दीन मुक्ति कूं चाहैं, खांहि गऊ और सूर।।7।।
दास गरीब उधार नहीं है, सौदा पूरमपूर।।8।।2।।