Topic: राग बिजोग (Rag Bijog)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 807
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
सुनियौं संत सुजांन। गर्ब नहीं करनां रे।।टेक।। च्यारि दिनां की चिहर बनी है। आखरि तोकूं मरनां रे।।1।। तूं जांनैं मेरी ऐसैं निबहैगी। हरदम लेखा भरना रे।।2।। खाले पीले बिलसि ले रे हंसा। जोड़ि जोड़ि नहीं धरना रे।।3।। दास गरीब सकल में साहिब। नहीं किसी स्यौं अरना रे।।4।।1।। सुनियौ। संत सुजान। दिया हम हेला रे।।टेक।। और जनम बहुतेरे होसी। मानुष जनम दुहेला रे।।1।। तूं ज कहै मैं लसकर जोड़ौं। चलना तुझे अकेला रे।।2।। अरब खरब लग माया जोरी। संग न चलसी धेला रे।।3।। याह तौ सत की मेरी नवरिया। सतगुरु पारि पहेला रे।।4।। दास गरीब कहैं भाई साधौ। शब्द गुरु चित चेला रे।।5।।2।।