Topic: पारसी बैंत (Parsi Baint)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 655
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
बंदे जांनि साहिब सार बे, पिदर मादर आप कादर, नहीं कुल परिवार बे।।1।। जल बूंद सें जिनि साज साज्या, लहम दरिया नूर बे। है सकल सरबंग साहिब। देखि निकटि न दूरि बे।।2।। जिन्द जूंनी बे निमूंनी, जागता गुरु पीर बे। उलटि पटण मेर चढनां। लहम दरिया तीर बे।।3।। अजब साहिब है सुभांनं, खोज दम का कीन्ह बे। त्रिकुटी कै घाटि चढि करि, ध्यान धरि दुरबीन बे।।4।। अजब दरिया है हिरंभर, परमहंस पिछा ंनि बे। आब खाख न बाद आतश। ना जिंमी असमांन बे।।5।। अलख आप अलह कबीर साहिब, कुरस कुंजि जहूर बे। अरश ऊपरि महल मालिक, दर झिलमिला नूर बे।।6।। मौले करीम खुदाय खूबी, धुंनि सहंस जाप बे। बंग रोज निवाज कलमां, है शब्द गरगाप बे ।।7।। निरभै बिहंगम नाद बाजै, निरखि करि टुक देखि बे। अरशी अजूंनी जिंद जोगी, अलख आदि अलेख बे।।8।। मढी महल तास कै, आसन असंभी ऐंन बे। पाजी गुलाम गरीब तेरा, देखते सुख चैंन बे।।9।।1।।
बंदे खोजि पैंड़ा पकरि बे, लेखा सरे में लीजियेगा, करि धनी का जिकर बे।।1।। जिकर फिकर फिलादि करि ले, अंदरूनी अरश बे। हाली मुवाली यादि कीजैं ना सरे में तरस बे।।2।। रसना रंगीला राम जपि ले, अलख कादर आदि बे। पीरां फकीरां परसि ले, पूजौ सनेही साध बे।।3।। दरगह मिटै ज्यों डंड तेरा, नेकी निरंतन राखि बे। ना पैद सें पैदा किया, तूं नाम बिन ना पाक बे।।4।। दिल सफा करि सैलांन कीजै, बंक मारग बांट बे। इला पिंगुला सुषमनां, तूं उतरि औघट घाट बे।।5।। बंक नाल विसाल बहना, है अमीरस अरश बे। रसना बिहूंना राग गावे, बिना चिसमौं दरश बे।।6।। प्याला अमीरस पीजिये, खूल्हे हैं बजर कपाट बे। अरश कुरश अबंध अबिगत, कोल्हू चवे बिन लाठि बे।।7।। निरभै निरंतर नेम रखि, अकलां अनाहद राति बे। मुक्ता मुलायम यादि साहिब, दूरि करि दिल घात बे।।8।। जोगी बियोगी बिंद रखि शुन्य में समान समानां सिंध बे। हाजरि गुलाम गरीब है, सोला कला रवि चंद बे।।9।।
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बंदे देखिले दुरबीन बे, ऐंनक उघारि किवार खोल्हौ, चलै जल बिन मीन बे।।1।। बिना जल जहां मीन चलता, नाम नौका अधरि बे। बेड़े बिमांन अमांन देखौ। को लखै याह कदर बे।।2।। पांनी बिना सरबर सरू, जहां फूल है गुलजार बे। अधरि बाग अनंत फल, कायम कला कर्तार बे।।3।। करि निगाह अगाह आसन, बरषता बिन बदर बे। बीना पखावज ताल सुर, बाजे बजैं जहां मधुर बे।।4।। चिसम बंक अनंक नासा, अधरि महल अकाश बे। दरी खानैं दम दुलीचा, चुसम करि दम श्वास बे।।5।। बांनी बिनोद असोध पुर, चंदा नहीं जहां सूर बे। पांनी पवन नहीं भवन भारी, कला संख सपूर बे।।6।। कायम कुलफ कूंची लगी, खोल्है सोई सत पार बे। कहता गरीब तबीब तन, चंगा करत कबीर बे।।7।।5।।