Topic: बिरहचितावनी का अंग (Birah Chitavani ka Ang)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 27
गरीब, बैराग नाम है त्याग का, पांच पचीसों मांहि। जब लग सांसा सर्प है, तब लग त्यागी नांहि।।1।।
गरीब, बैराग नाम है त्याग का, पांच पचीसों संग। ऊपरकी कंचली तजी, अंतर विषै भुवंग।।2।।
गरीब, असन बसन सब तजि गये, तजि गये गाम रु गेह। मांहे सांसा सूल है, दुर्लभ तजना येह।।3।।
गरीब, बाज कुही गति ज्ञान की, गगन गिरज गरजंत। छूटें सुंन अकासतैं, सांसा सर्प भछंत।।4।।
गरीब, नितही जांमैं नित मरैं, सांसे मांहि सरीर। जिनका सांसा मिट गया, सो पीरन सिर पीर।।5।।
गरीब, ज्ञान ध्यान दो सार हैं, तीजें तत्त अनूप। चैथें मन लाग्या रहैं, सो भूपन सिर भूप।।6।।
गरीब, काशी करोंत लेत है, आंन कटावें शीश। बन बन भटका खात हैं, पावत ना जगदीश।।7।।
गरीब, सांसा तौ संसार है, तन पर धारे भेख। मरकब होंहि कुम्हार कै, संन्यासी और सेख।।8।।
गरीब, मन की झीनि ना तजी, दिलही मांहि दलाल। हरदम सौदा करत है, कर्म कुसंगति काल।।9।।
गरीब, मन सेती खोटी घड़े, तन से सुमरन कीन। माला फेरे क्या हुवा, दूर कुटन बेदीन।।10।।
गरीब, तन मन एक अजूद करि, सुरति निरति लौ लाइ। बेड़ा पार समंद होइ, जे एक पलक ठहराइ।।11।।
गरीब, दृृष्टि पड़ै सो फना है, धर अंबर कैलास। क्रित्रम बाजी झूठ है, सुरति समोवो स्वास।।12।।
गरीब, सुरति स्वांस कूं एक कर, कुंजि किनारै लाई। जाका नाम बैराग है, पांच पचीसों खाई।।13।।
गरीब, पांच पचीसों भून करि, बिरह अगनि तन जार। सो अविनासी ब्रह्म है, खेले अधर अधार।।14।।
गरीब, त्रिकुटी आगे झूलता, बिनहीं बांस बरत। अजर अमर आनंद पद, परखे सुरति निरत।।15।।
गरीब, यह महिमा कासे कहूँ, नैनों मांही नूर। पल पल में दीदार है, सुरति सिन्धु भरपूर।।16।।
गरीब, झीना दरसें दास कूं, पौहप रूप प्रवान। बिनही बेली गहबरै, है सो अकल अमान।।17।।
गरीब, अकल अभूमी आदि है, जाका नाहीं अंत। दिलही अंदर देव है, निरमल निरगुन तंत।।18।।
गरीब, तन मन सेती दूर है, मांहे मंझ मिलाप। तरबर छाया विरछ मैं, है सो आपे आप।।19।।
गरीब, नौ तत्त के तो पांच हैं, पांच तत्त के आठ। आठ तत्त का एक है, गुरु लखाई बाट।।20।।
गरीब, चार पदारथ एक करि, सुरति निरति मन पौन। असल फकीरी जोग यौंह, गगन मंडल कूं गौन।।21।।
गरीब, पंछी घाल्या आलना, तरबर छाया देख। गरभ जूंनि के कारणै, मन में किया बिबेक।।22।।
गरीब, जैसे पंछी बन बस्या, संझा लै बिसराम। प्रातः समै उठि जात है, सो कहिये निहकाम।।23।।
गरीब, जाके नाद न बिंद है, घट मठ सहित मुकाम। गरीबदास सेवन करे, आदि अनादी राम।।24।।