Topic: असुर निंकदन रमैंणी (Asur Nikandan Rameni)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 704
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
सतपुरुष समरथ ओंकारा, अदली पुरुष कबीर हमारा।1।
आदि जुगादि दया के सागर, काल कर्म के मौचन आगर।2।
दुःख भंजन दरवेश दयाला,असुर निकन्दन कर पैमाला।3।
आव खाक पावक और पौना, गगन सुन्न दरयाई दौना।4।
धर्मराय दरबानी चेरा, सुर असुरों का करै निबेरा।5।
सत का राज धर्मराय करहीं, अपना किया सभैडण्ड भरहीं।6।
शंकर शेष रु ब्रह्मा विष्णु, नारद शारद जा उर रसनं।7।
गौरिज और गणेश गोसांई, कारज सकल सिद्ध हो जाई।8।
ब्रह्मा विष्णु अरु शम्भू शेषा, तीनों देव दयालु हमेशा।9।
सावित्री और लक्ष्मी गौरा, तिहुं देवा सिर कर हैं चैरा।10।
पाँच तत आरम्भन कीना, तीन गुणन मध्य साखा झीना।11।
सतपुरुष सैं ओंकारा, अबिगत रूप रचै गैनारा।12।
कच्छ मच्छ कुरम्भ और धौला, सिरजन हार पुरुष है मौला।13।
लख चैरासी साज बनाया, भगलीगर कुं भगल उपाया।14।
उपजैं बिनसैं आवैं जाहीं, मूल बीज कुं संसा नाहीं।15।
लील नाभ सैं ब्रह्मा आये, आदि ओम् के पुत्र कहाये।16।
शम्भू मनु ब्रह्मा की साखा, ऋग यजु साम अथर्वन भाषा।17।
पीवरत भया उत्तानं पाता, जा कै ध्रूव हैं आत्म ग्याता।18।
सनक सनन्दनं संत कुमारा, चार पुत्र अनुरागी धारा।19।
तेतीस कोटि कला विस्तारी, सहंस अठासी मुनिजन धारी।20।
कश्यप पुत्र सूरज सुर ज्ञानी, तीन लोक में किरण समानी।21।
साठ हजार संगी बाल केलं, बीना रागी अजब बलेलं।22।
तीन कोटि योधा संग जाके, सिकबंधी हैं पूर्ण साके।23।
हाथ खड़ग गल पुष्प की माला, कश्यप सुत है रूप बिसाला।24।
कौसत मणि जड़या विमान तुम्हारा, सुरनर मुनिजन करत जुहारा।25।
चन्द सरू चकवै पृथ्वी माहीं,निस वासर चरणौं चित लाहीं।26।
पीठै सूरज सनमुख चन्दा, काटैं त्रिलोकी के फंदा।27।
तारायण सब स्वर्ग समूलं, पखे रहैं सतगुरु के फूलं।28।
जय जय ब्रह्मा समर्थ स्वामी, येती कला परम पद धामी।29।
जय जय शम्भू शंकर नाथा, कला गणेशं रु गौरिज माता।30।
कोटि कटक पैमाल करंता, ऐसा शम्भू समरथ कन्ता।31।
चन्द लिलाट सूर संगीता, जोगी शंकर ध्यान उदीता।32।
नील कण्ठ सोहै गरुडासन, शम्भू जोगी अचल सिंघासन।33।
गंग तरंग छुटैं बहुधारा, अजपा तारी जय जय कारा।34।
ऋद्धि सिद्धि दाता शम्भू गोसांई, दालीदर मोच सभै हो जाई।35।
आसन पद्म लगाये जोगी, निहइच्छया निर्बानी भोगी।36।
सर्प भुवंग गलै रूंड माला, बृषभ चढिये दीन दयाला।37।
वामैं कर त्रिशूल विराजै, दहने कर सुदर्शन साजै।38।
सुन अरदास देवन के देवा, शम्भु जोगी अलख अभेवा।39।
तू पैमाल करे पल मांही, ऐसे समर्थ शम्भू सांई।40।
एक लख योजन ध्वजा फरकैं, पचरंग झण्डे मौहरै रखै।41।
काल भद्र कृत देव बुलाऊँ, शकंर के दल सब ही ध्याऊँ।42।
भैरों खित्रपाल पलीतं, भूत अर दैंत चढ़े संगीतं।43।
राक्षस भ´जन बिरद तुम्हारा, ज्यूं लंका पर पदम अठारा।44।
कोट्यौं गंधर्व कमंद चढ़ावैं, शंकर दल गिनती नहीं आवैं।45।
मारैं हाक दहाक चिंघारें, अग्नि चक्र बाणों तन जारैं।46।
कंप्या शेष धरनि थॅरानी, जा दिन लंका घाली घानी।47।
तुम शम्भू ईशन के ईशा, वृषभ चढिये बिसवे बीसा।48।
इन्द्र कुबेर और वरूण बुलाऊँ, रापति सेत सिंघासन ल्याऊँ।49।
इन्द्र दल बादल दरियाई, छयानवैं कोटि की हुई चढाई।50।
सुरपति चढ़े इन्द्र अनुरागी, अनन्त पद्म गंधर्व बड़भागी।51।
किसन भण्डारी चढ़े कुबेरा, अब दिल्ली मंडल बौहर्यों फेरा।52।
वरुण विनोद चढ़े ब्रह्म ज्ञानी, कला सम्पूर्ण बारह बानी।53।
धर्मराय आदि जुगादि चेरा, चैदह कोटि कटक दल तेरा।54।
चित्रगुप्त के कागज मांही, जेता उपज्या सतगुरु सांई।55।
सातों लोक पाल का रासा, उर में धरिये साधू दासा।56।
विष्णुनाथ हैं असुर निकन्दन, संतों के सब काटैं फन्दन।57।
नरसिंघ रूप धरे गुरुराया, हिरणाकुस कुं मारन धाया।58।
संख चक्र गदा पद्म विराजैं, भाल तिलक जाकैं उर साजैं।59।
वाहन गरुड़ कृष्ण असवारा, लक्ष्मी ढौरे चोर अपारा।60।
रावण महिरावण से मारे, सेतु बांध सेना दल त्यारे।61।
जरासिंध और बालि खपाए, कंस केसि चानौर हराये।62।
कालीदह में नागी नाथा, सिसुपाल चक्र सैं काट्या माथा।63।
कालयवन मथुरा पर धाये, ठारा कोटि कटक चढ़ आए।64।
मुचकंद पर पीताम्बर डार्या, कालयवन जहां बेगि सिंघार्या।65।
परसुराम बावन अवतारा, कोई न जानै भेद तुम्हारा।66।
संखासुर मारे निर्बानी, बराह रुप धरे परवानी।67।
राम औतार रावण की बेरा, हनुमंत हाका सुनी सुमेरा।68।
आदि मूल वेद ओंमकारा, असुर निकन्दन कीन सिंघारा।69।
वाशिष्ठ विश्वामित्र आए, दुर्वासा और चुणक बुलाए।70।
कपल कलंदर कीन जुहारा, फौज नकीब सभन सिरदारा।71।
गोरख दत्त दिगम्बर बाला, हनुमंत अंगद रुप विशाला।72।
ध्रुव प्रहलाद और जनक विदेही, सुखदे संगी परम सनेही।73।
पारासुर और व्यास बुलाये, नल नील मौहरे चढ धाए।74।
सुग्रीव संग और लछमन बाला, जोर घटा आए घन काला।75।
जैदे पायल जंग बजाए, अजामेल अरु हरिश्चन्द्र आए।76।
तामरधुज मोरधुज राजा, अम्बीरष कर है पूर्ण काजा।77।
सूरज बंसी पांचों पांडो, काल मीच सिर देवै डांडो।78।
धर्म युधिष्ठिर धरे धियाना, अर्जुन लख संघानी बाना।79।
सहदे भीम नकुल और कौंता, द्रोपदी जंग का दीना न्यौंता।80।
हाथ खप्पर अरु मस्तक बिंदा, ठारह खूहनीं मेलै दुंदा।81।
देवी शिव शिव करे सिंघारै, खड़ग बान चकरों सैं मारैं।82।
चोंसठ जोगनि बावन बीरा, भक्षण बदन करैं तदवीरा।83।
असुर कटक धूमर उड़ जाई, सुरौं रक्षा करै गोसाईं।84।
पचरंग झण्डे लंब लहरिया, दक्खन के दल उतर उतरिया।85।
पचरंग झण्डे लंब चलाये, दक्खन के दल उत्तर धाये।86।
मौहरै हनुमंत गोरख बाला, हरि के हेत हरौल हमाला।87।
चिंहडोल चुणक दुर्वासा देवा। असुर निकंदन बूड़त खेवा।88।
बलि अरु शेष पतालौं साखा, सनक सनन्दन सुरगों हाका।89।
दहुं दिश बाजु ध्रु प्रहलादा, कोटि कटक दल कटा प्यादा।90।
बज्र बान की बोऊँ बाड़ी, सतगुरु संत जीत है राड़ी।91।
जे कोई माने शब्द हमारा, राज करे काबुल कंधारा।92।
अरब खरब मक्के कुं ध्याऊँ, मदीना बांध हद्द में ल्याऊँ।93।
ईरा तुरा कहां शिकारी, गढ गजनी लग ह्नै असवारी।94।
दिल्ली मंडल पाप की भूमा, धरती नाल जगाऊँ सूमा।95।
हस्ती घोरा कटक सिंघारौं, दृष्टि परै असुरों दल मारौं।96।
संख पंचायन नादू टेरं, स्वर्ग पतालों हाक सुमेरं।97।
बालमीक सुर बाचा बंधा, पांडो जग्य द्वापर की संधा।98।
नारद कुम्भक ऋषि कुर्बाना,मारकण्डे रूमी रिषि आना।99।
इन्द्ररिषि अरू बकतालब स्वामी, और संत साधू घणनामी।100।
नाथ जलंधर और अजैपाला, गुरु मछंदर गोरख बाला।101।
भरथरी गोपी चन्दा जोगी, सुलतान अधम है सब रस भोगी।102।
नर हरिदास पखै बलि भीषम, व्यास बचन परमानी सीखं।103।
नामा और रैदास रसीला, कोई न जानै अबिगत लीला।104।
पीपा धन्ना चढ़े बाजीदा, सेऊ समन और फरीदा।105।
दादू नानक नाद बजाये, मलूक दास तुलसी चढ आये।106।
कमाल मल्ल और सुर ज्ञानी, रामानन्द के हैं फुरमानी।107।
मीराबाई और कमाली, भिलनी नाचै दे दे ताली।108।
नासकेतु नकीब हमारा, उद्यालक मुनि करत जुहारा।109।
साहिब तख्त कबीर खवासा, दिल्ली मंडल लीजै वासा।110।
सतगुरु दिल्ली मंडल आयसी, सूती धरनी सुम जगायसी।111।
कागभुसुंड छत्र कै आगै, गंधर्व करत चलत हैं रागैं।112।
ऐता गुफ्तार रासा, पढैगा सो चढैगा ।113।
चम्पैगा पर भूमि सीम, साक्षीकृष्ण पांचो पांडो भारथी भीम।114।
द्रोपदी के खप्पर में मेदनी समायसी, चैसठ जोगनी मंगल गायसी।115।
बज्रबाण का ताला राक्षस सिर ठोक सी, दक्खन के दल दीप उत्तर कुं झोक सी।116।
दिल्ली मंडल राज त्रिकुट कुं साधसी, यह लीला प्रमान जो सतगुरु कुं आराध सी।117।
कजली बन के कुंजर ज्यूं गोफन के गिलोल हैं, राक्षस का रासा भंग खाली चहंुडोल है।118।
निहकलंक अंस लीला कालंदर कुं मार सी, अर्ध लाख वर्ष बाकी दानें और दूतों को सिंघारसी।119।
कलियुग की आदि में चानौर कंस मारे थे, त्रोता की आदि में, हिरणाकुश पछारे थे।120।
बलि की विलास यज्ञ सुरपति पुकारे थे, बामन स्वरूप धर कीन्हीं सुरपति पुकार, बलि बैन निस्तारे थे।121।
कलियुग की आदि, बारां सदी की अंत है दूलह दयाल देव। जानत कोई संत भेव यौही बाला कंत है। दिल्ली के तख्त छत्र फेर भी फिराय सी, खेलत गुफ्तार सैन भंजन सब फोकट फैन, महियल राज बाला पुरुष सतगुरु दिखलाय सी। आवैगा दक्खन सैं दिवाना , काबुल का काल कील किलियं गल है तुरकाना। किल किली किलियं औतार कलां, जीतन जंग झुंझमला
ऐसा पुरुष आया कहता है गरीबदास, दिल्ली मंडल होय विलास, निहकलंक राया।122।