Topic: अमल अहारी को अंग (Amal Ahaari ko Ang)
Book: Sat Granth Sahib of Garib Das Ji
Page: 994
Explanation: Sant Rampal Ji Maharaj | Satlok Ashram
कबीर, कलजुग काल पठाईया, भांग तमाखु फीम। ज्ञान ध्यान की सुध नहीं, बसैं इन्हौं की सीम।।1।।
कबीर, गऊ जो भिष्टा भखि है, बिप्र तमाखू भंग। शस्त्र बांधै दरशनी, यह कलिजुग के रंग।।2।।
कबीर, भांग तमाखू छोतरा, आफू और शराब। कबीर, कौन करै बंदगी, यह तो भये खराब।।3।।
कबीर, अमल मांहि औगुण कहा, कहो मोहि समझाय। उत्तर प्रश्न मैं सुनूं, मन को संशय जाय।।4।।
कबीर, भांग भखे बल बुद्धि को, आफू अहमक सोय। दोय अमल औगुण कह्यो, ज्ञानवंत सुनि लोय।।5।।
कबीर, औगुण कहूं शराब का, ज्ञानवंत सुनि लेय। मानुष सौं पशवा करैं, द्रव्य गांठ का देय।।6।।
कबीर, काम हरकम बल घटत, तृष्णा नाहीं ठौर। ढिग होय बैठे दीन कै, एक चिलम भरि और।।7।।
कबीर, अमल अहारी आत्मा, कबहूं न पावै पार। कहैं कबीर बिचार के, त्यागो तत्व बिचार।।8।।